*सरकारे दो आलम "हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सलल्लाहो अलैहे वसल्लम" की "आमद" का "जुलूस" और हमारा "क़िरदार".....???*
भाईयों,
ज़रा *ग़ौर* करें !
हम *ईद मिलादुन्नबी* का जुलूस निकालकर *"नब़ी"* से अपनी सच्ची *ग़ुलामी* का सिर्फ़ *"दावा"* करते हैं, *"सुबूत"* नहीं देते !
देखिए कैसे.....
*👉हमारे "नब़ी" ने फरमाया, पानी बैठकर पीना चाहिए।*
👉लेकिन जुलूस में हम जानवरों की तरह पानी पाऊच को दांतों से नोचकर और चलते हुए पानी पीते हैं।
*👉हमारे "नब़ी" ने फरमाया, खाना दस्तरखान में रखकर और बैठकर खाना चाहिए।*
👉लेकिन जुलूस में हम खीर, हलवा, लंगर चलते हुए खाते हैं !
यही नहीं जुलूस में केला, सेब, अंगूर जैसे फल भी बतौर तबर्रूख खूब लुटाए जाते हैं। इस तबर्रूख को भी हम चलते हुए खाते हैं।
और पान गुटखा की तो बात ही क्या करना इसे तो लोग एैसे मुंह में दबाए रहते हैं मानों जुलूस में चलने का दम इसी से मिल रहा है।
बहरहाल इन सब के बीच जुलूस के गुजरने के बाद सड़कों में जगह-जगह प्लास्टिक की कटोरियां, दोने, पानी के पाऊच, केले के छिलके इस तरह बिखरे पड़े नजर आते हैं, जैसे कचरे का ढ़ेर जानवरों के रौंदने के बाद बिखरा नजर आता है।
इसके अलावा डीजे जिसका कानफोड़ू आवाज यह एहसास ही नहीं होने देता कि यह
*आमदे मुस्तफ़ा* का जुलूस है !
इसलिए भाईयों.....
अगर हम अपने को *"नब़ी" के "सच्चे ग़ुलाम" होने का "दावा" करते हैं तो इसका "सुबूत" भी हमें जुलूस में बाअदब "नातख्वानी" व "दरूद श़रीफ" का विर्द कर और दुनिया वालों को "नब़ी" के दिए गए "पैग़ाम" को पहुंचाकर देना चाहिए। यही नहीं जुलूस में भी हम चलें तो इस अदब और एहतराम के साथ कि दुनिया देखकर कह उठे, जब ग़ुलामों का क़िरदार एैसा है तो*
*"नब़ी" के "क़िरदार" का "आलम" क्या होगा !*
*भाईयों, मुझ जाहिल को जितनी समझ थी, आप लोगों से शेयर किया है। इसके लिखने में अगर मुझसे कोई "ग़लती" या "गुस्ताखी" हुई हो तो आप लोगों से "गुजारिश़" है उसे जरूर बताएं ताकि मैं अपनी "इस्लाह" कर सकूं !*
*आसियों पे श़फाअत का,*
*महस़र के दिन*
*डाल देगा दुश़ाला,*
*हमारा "नब़ी"*
*अपने हर उम्मती को,*
*करेगा अता*
*आबे क़ौसर का प्याला,*
*हमारा "नब़ी"*
इसलिए...
*ज़ोर से बोलो* - *झूम के बोलो*
*🌹सरकार की आमद🌹*
*🌹🌹मरहबा🌹🌹*
*🌹दिलदार की आमद🌹*
*🌹🌹मरहबा 🌹🌹**सरकारे दो आलम "हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सलल्लाहो अलैहे वसल्लम" की "आमद" का "जुलूस" और हमारा "क़िरदार".....???*
भाईयों,
ज़रा *ग़ौर* करें !
हम *ईद मिलादुन्नबी* का जुलूस निकालकर *"नब़ी"* से अपनी सच्ची *ग़ुलामी* का सिर्फ़ *"दावा"* करते हैं, *"सुबूत"* नहीं देते !
देखिए कैसे.....
*👉हमारे "नब़ी" ने फरमाया, पानी बैठकर पीना चाहिए।*
👉लेकिन जुलूस में हम जानवरों की तरह पानी पाऊच को दांतों से नोचकर और चलते हुए पानी पीते हैं।
*👉हमारे "नब़ी" ने फरमाया, खाना दस्तरखान में रखकर और बैठकर खाना चाहिए।*
👉लेकिन जुलूस में हम खीर, हलवा, लंगर चलते हुए खाते हैं !
यही नहीं जुलूस में केला, सेब, अंगूर जैसे फल भी बतौर तबर्रूख खूब लुटाए जाते हैं। इस तबर्रूख को भी हम चलते हुए खाते हैं।
और पान गुटखा की तो बात ही क्या करना इसे तो लोग एैसे मुंह में दबाए रहते हैं मानों जुलूस में चलने का दम इसी से मिल रहा है।
बहरहाल इन सब के बीच जुलूस के गुजरने के बाद सड़कों में जगह-जगह प्लास्टिक की कटोरियां, दोने, पानी के पाऊच, केले के छिलके इस तरह बिखरे पड़े नजर आते हैं, जैसे कचरे का ढ़ेर जानवरों के रौंदने के बाद बिखरा नजर आता है।
इसके अलावा डीजे जिसका कानफोड़ू आवाज यह एहसास ही नहीं होने देता कि यह
*आमदे मुस्तफ़ा* का जुलूस है !
इसलिए भाईयों.....
अगर हम अपने को *"नब़ी" के "सच्चे ग़ुलाम" होने का "दावा" करते हैं तो इसका "सुबूत" भी हमें जुलूस में बाअदब "नातख्वानी" व "दरूद श़रीफ" का विर्द कर और दुनिया वालों को "नब़ी" के दिए गए "पैग़ाम" को पहुंचाकर देना चाहिए। यही नहीं जुलूस में भी हम चलें तो इस अदब और एहतराम के साथ कि दुनिया देखकर कह उठे, जब ग़ुलामों का क़िरदार एैसा है तो*
*"नब़ी" के "क़िरदार" का "आलम" क्या होगा !*
*भाईयों, मुझ जाहिल को जितनी समझ थी, आप लोगों से शेयर किया है। इसके लिखने में अगर मुझसे कोई "ग़लती" या "गुस्ताखी" हुई हो तो आप लोगों से "गुजारिश़" है उसे जरूर बताएं ताकि मैं अपनी "इस्लाह" कर सकूं !*
*आसियों पे श़फाअत का,*
*महस़र के दिन*
*डाल देगा दुश़ाला,*
*हमारा "नब़ी"*
*अपने हर उम्मती को,*
*करेगा अता*
*आबे क़ौसर का प्याला,*
*हमारा "नब़ी"*
इसलिए...
*ज़ोर से बोलो* - *झूम के बोलो*
*🌹सरकार की आमद🌹*
*🌹🌹मरहबा🌹🌹*
*🌹दिलदार की आमद🌹*
*🌹🌹मरहबा 🌹🌹*
*🌹आका की आमद🌹*
*🌹🌹 मरहबा🌹🌹*.............
*🌹आका की आमद🌹*
*🌹🌹 मरहबा🌹🌹*.....m...k